एक लड़की को देखा
देखता ही रहा,
कुछ है अलग,
क्या है अलग,
क्यों है अलग,
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
साफ़ रंग
सिर झुका हुआ
सादे वस्त्र
हाथ में लैप्टॉप बैग,
पर ये क्या
चेहरा काला
क्यों मगर,
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा।
क्या है ऐसा,
क्यों है ऐसा
क्या है ये
जन्म से ऐसे,
या किसी ने
किया ऐसा,
ऐसा विचारों ने
मुझे झकझोरा।
रोज़ तो पढ़ते
अख़बारों में,
कभी किसी को
लूटा जाता,
कभी किसी को
छीना जाता,
कभी तेज़ाब
फेंका जाता,
क्यों है ऐसा
क्या हुआ
कहाँ हुआ,
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
कितनी पीड़ा
कितनी घृणा
कितना आवेश
कितना ग़ुस्सा
कैसे जीती होगी
कैसे मुस्कुराती होगी
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
मन तो किया
जा पूछूँ,
क्या हुआ
कैसे हुआ
किसी ने किया
या जन्म से था ऐसा,
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
सोच कर दर्द उसका
सिहरान हुए
रोंगटे खड़े हुए
एक चीख़ निकलने को थी,
कैसे पूँछूँ
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
अभी अंत नहीं
हुआ था
मन में
द्वन्द का,
याद आया
बाप हूँ
एक बेटी का,
और डर ने
मुझे आ घेरा,
ध्यान रखना है
पलकों की छांव
में पालना है
हमेशा रहूँगा
संग उसके,
मुस्कुराहट ना उसकी
जाने दूँगा,
ग़लत ना कभी
होने दूँगा,
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
ख़याल आया
अगर सभी
संयम रखें,
अगर सभी
इज़्ज़त रखें,
अगर सभी को
हो अहसास दर्द का,
डर मुझे ना लगेगा फिर,
ना सिर झुकाए
जाएगी वो,
ना होगी घृणा
उसके मन में,
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा।
ऐसे विचारों ने
मुझे झकझोरा ।