आज भविष्यवक्ता का कथन पढ़ा

आज भविष्यवक्ता का कथन पढ़ा

शरीर में झुरझूरी दौड़ गयी,
लगा वही समय
और बड़े आग़ाज़ के साथ 
लौट आया है,

वही सब फिर 
होगा,
वही पंक्तियाँ 
पढ़ी जाएँगी,
वही ग़म 
दिखायी देंगे,
हम फिर 
उसी चौराहे पर खड़े होंगे,
पर ये निश्चित नहीं
की अब की बार 
कौन साथ होगा
और कौन छोड़गा साथ,
कौन रोएगा 
की क्यों ऐसा 
होता है तुम्हारे साथ ।
हम फिर 
एक कोने में बैठे 
रोएँगे ,
प्रभु से बात कर 
फिर पूछेंगे 
ऐसा क्या 
दुष्कर्म किया था हमने 
जो सिर्फ़ दुःख 
स्थायी है,
क्यों मुस्कुराहटों को कहीं 
पीछे छोड़ आए है,
क्यों हम अपने आप 
में ही घुटते आए हैं,
क्यों तुम नहीं दे सकते 
वो पल कुछ साल 
की हम अपनो की 
तक़दीर बदल डालें।
जवाब में 
फिर कुछ संकेत आएँगे,
लगेगा हमें शायद 
और मज़बूत होना है,
परंतु कब तक,
ये चक्र क्या यूँही चलेगा,
ये कुंठा का क्या 
कभी अंत ना होगा,
ना ही होगी 
शांति स्थापित जीवन में,
सिर्फ़ यूँही कोने में बैठा 
होंठ सिए बेठूँगा मैं।
कहीं ऐसा ना हो 
की ख़त्म हो जाए तासीर 
जो हमारी है,
हम यूँही अग्रसर हो जाएँ
मृत्यु के मुख में 
बिगड़ी तक़दीर लिए,
या कुछ ऐसा ना हो 
जिसे झेलने की हममें 
ताक़त ना हो,
और यूँही 
दुनिया के किसी कोने में 
अपने अंत की प्रतीक्षा 
में जिए जाएँ।

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