राजनीति का रंग
और ढंग बदल गए,
बदल चुके इंसान,
दफ़न हो चुकी
राजनीति
बचा ना कोई निशान।
कुछ हैं इतिहास में
जिन्होंने
लिखी नीतियाँ ,
किया करते थे राज
नाम ले कर जिनका
बनती थीं नीतियाँ।
अब तो राजनीति
बन गयी है रंग मंच
उन लोगों का
जो बटोरें दोनो हाथ,
खेलें खेल
बैठ क़ब्र पर,
नाच नचाते
बन कर जगन्नाथ।
प्रजा को तो
दफ़ना चुके हैं
अपने ही हाथ,
राजा बन बैठे
मुर्दों की बारात,
बने हुए हैं भक्षक
हाथों में
लिए कटार,
क़त्ल करना
आदत उनकी,
कैसे जिए हम साथ।
अब एक किरण
फूटी है
सूर्योदय के साथ,
कुछ
कर गुज़रने को
तत्पर
दिखता है वो यार,
भगा फिरता
जहांन भर में,
ना लेता वो साँस,
जा कर सब से मिलता
माँगे बस दो दो हाथ,
चलो चलें हम
दें उसको ये सौग़ात,
खड़े हम साथ तेरे
तू करता चल अपना काम,
हम मनाएँगे संग तेरे
खड़े होकर
हर्सो-उल्हास
ले तेरा
हाथों में हाथ।