माँ तुम्हारा प्यार ग़ज़ब है

माँ तुम्हारा प्यार ग़ज़ब है

कभी प्यार कभी दुलार

कभी ग़ुस्सा  कभी धिक्कार 

ग़ज़ब है,

कह देती हो कुछ ऐसा 

गले में निवाला अटक गया,

दूजे ही पल देती हो 

दुलार और प्यार भरपूर,

माँ तुम्हारा प्यार ग़ज़ब है ।

शिकायतें करती होतीं भरपूर 

और शब्दों से देती हो ह्रदय भेद 

उस पल ऐसा होता है प्रतीत 

तुम त्याग मेरा कर 

छोड़ दोगी यूँही मझवार में,

पर फिर आता है हाथ सिर पर 

एक प्यार भरा दुलार सिर पर,

बताती हो की क़याँ करूँ 

जिससे सुधरें 

ये ग्रहों के असर सभी,

माँ तुम्हारा प्यार ग़ज़ब है ।


कैसे बताऊँ 

कैसे उलझा हूँ मैं इस संसार में,

कैसे बताऊँ 

कहाँ गया मेरा विवेक है,

कैसे बताऊँ 

की याद हैं मुझे सभी वादे,

कैसे बताऊँ 

की प्रयत्नशील हूँ मैं,

कैसे बताऊँ 

निर्भरता है ग्रहों की चाल पर,

कैसे बताऊँ 

समय देते हुए समय के साथ 

चलता हूँ मैं।


जानता हूँ 

ज्ञात हैं तुम्हें मेरी मनोस्तिथि,

पर फिर भी 

कह दोगी बस 

की किया मैने 

तुम्हें अपमान का भागी,

और फिर हो जाओगी प्रयत्नशील 

मेरे उद्धार में,

माँ तुम्हारा प्यार ग़ज़ब है ।







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