वक़्त करवट बदलता है
आवाज़ नहीं होती,
वो आग़ाज़ करता है
तो आवाज़ नहीं होती ।
हम झेलते हुए मार वक़्त की
ताक़त को देखते हैं
वक़्त जब ना हो साथ
ज़ोर-ए-परवाज़ नहीं होती।
हमने रखा था
हम-परवाज़ वक़्त को हार कर
वक़्त के साथ
इज़ं-ए-परवाज़ की आवाज़ नहीं होती ।
तय्यार रहना
हमारी आदत
बनायी थी माँ ने
साथ वक़्त के चलो तो
क़िस्मत बदजात नहीं होती ।
वक़्त के साथ
दोस्त नहीं बदलते ए बेमुरावत
वक़्त आइना दिखाए तो
मेहराब की पनाह नहीं होती।
समझा इस आलम-ए-सियासत को
मर मर के
सन्यासी इस जहाँ में
आँसुओं से बरसात नहीं होती ।