ग़म-ए-उल्फ़त से बेज़ार आगे चल दिए

उल्फ़तों में दोस्त यूँही बदनाम हुए हैं,अह्द-ए-उल्फ़त तो चंद लमहों में सिमटा है,रह-ए-उल्फ़त पे चलने की गुज़ारिश की थीलगा कर लगाम हमारे लबों पर मुस्कुरा कर चल दिए।खोल दिए हमने जब दर-ए-उल्फ़तयारों को यारी याद आयीदेखा और चल दिए,बहार-ए-उल्फ़त में डूबे थे हमयारों को आवाज़ लगाई और पीछे चल दिए।सर-ए-उल्फ़त इस क़दर बरपाई थी भागते हुए पीछे पीछे यारों से आगे निकल गए,अब ये आलम है आवाज़ … Continue reading ग़म-ए-उल्फ़त से बेज़ार आगे चल दिए