नमन कर मैं चलूँ आगे लेने ब्रह्मज्ञान

एक आँधी सीआयी रहती जीवन में,इनसे बचने को तत्पर है रहता इंसान,बाल्यकाल में कहते पितापढ़ लिख ले अन्यथा उड़ जाएगा सूखे पत्ते समान,नासमझी में चले थे लड़ने हो पढ़े-लिखे जज़मान,सोचता यही चिंताग्रस्त हो जाएगी नैया पार,फिर जाऊँगा खोजने मैं उसे जो है सबका तारनहार।लो हो गया प्रतिबंधित इस जीवन मेंलड़ने आँधियों से,औरकरने सत्यापन,में उठूँगा और करूँगा जीवन का अभिनंदन,चल पड़ूँगा और लड़ूँगाबन चाणक्य का अभिमान आँधियों से अशोक समान।ज्ञात हुआ सत्य … Continue reading नमन कर मैं चलूँ आगे लेने ब्रह्मज्ञान