एक आँधी सी
आयी रहती जीवन में,
इनसे बचने को तत्पर है
रहता इंसान,
बाल्यकाल में कहते पिता
पढ़ लिख ले
अन्यथा उड़ जाएगा
सूखे पत्ते समान,
नासमझी में चले थे लड़ने
हो पढ़े-लिखे जज़मान,
सोचता यही चिंताग्रस्त
हो जाएगी नैया पार,
फिर जाऊँगा
खोजने मैं उसे
जो है सबका तारनहार।
लो हो गया प्रतिबंधित
इस जीवन में
लड़ने आँधियों से,
और
करने सत्यापन,
में उठूँगा और करूँगा
जीवन का अभिनंदन,
चल पड़ूँगा और लड़ूँगा
बन चाणक्य का अभिमान
आँधियों से अशोक समान।
ज्ञात हुआ
सत्य से परे हूँ मैं
जीवन ने जो मार्ग सुझाया
उसी पर भ्रमित हूँ मैं,
कहानी का
एक छोर अछूता है
समय ने किया उसका बखान।
बोध हुआ जब
समय है
सबसे बड़ा बलवान,
ध्यान धरूँ मैं
उस प्रभु का
कर समय का सम्मान,
दिया मुझे जो
मार्ग दर्शन
माँ ने
वही जिताता मुझे
यहाँ तहाँ सम्मान।
अब!!!
नमन कर मैं
चला हूँ आगे
लेने ब्रह्मज्ञान।