जब उस बार बुलाया था तुमने

पिछली बार भेजा था शेर 
बुलाने सपने में

मैं भागा चला आया था,
चढ़ा था पहाड़ तुम्हारा 
तब पहुँचा जहाँ 
आसन तुम्हारा था ,
वहीं अद्भुत रूप तुम्हारा 
पिंडी रूप में विराजी हो 
वहीं शेरों पर सवारी हो ।

तर गया था जीवन मेरा,
सभी दुखों को छोड़ आया हूँ,
सुखों से भरी झोली मेरी 
पढ़ लिख कर घर आया हूँ ।

फिर घूमा है जीवन चक्र,
दूर तलक चला आया हूँ 
बहुत कुछ पाया मैने,
ये आशीर्वाद तुम्हारा है ,
परंतु एक कमी फिर भी है 
जिससे मैं भर-पाया हूँ,
लड़ता हुआ 
थक गया थोड़ा 
तुम्हारे दर्शन कि आस 
मैं आज फिर लाया हूँ।

अब दो दर्शन माँ तुम अपने,
बच्चा तुम्हारा नमन कर 
यही आया हूँ ,
समझ लेना इसे विनती मेरी 
इसी आस में 
ये कविता भी मैं लिख पाया हूँ ।

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