महफ़िल-ए-जाँबाज़ को देख मुस्कुरा कर चल दिए

Dedicated  to all soldiers

महफ़िल-ए-जाँबाज़ को देख

मुस्कुरा कर चल दिए,

वो बैठे थे
नूर-ए-जंग की
कामयाबी की मिसाल दिए।
उस जाँबाज़ के
अपनो के आँसुओं को देख
रो पड़े
छाती उनकी चौड़ी थी
आँखों में आँसुओं को लिए ।
एक नादान भी था
माँ की अगोश में छिपा हुआ
नज़रें तलाशतीं
जाँबाज़ को उसकी,
देख कर चल दिए ।
क्या इनायत-ए-खुदा बरपी है
या बेरुख़ी है उसकी
मासूम को देख
ये सवाल कर सभी लोग चल दिए ।
तू ही बता
ए परवरदिगार
ये कैसा मंज़र है
शमशीर  से चमकी क़िस्मत लिए
वो यूँही चल दिए।
खड़ा तो कर दिया
मुज़ास्समा लोगों ने
उस जाँबाज़ का,
जिगर के टुकड़े को
यूँही चौराहे पर खड़ा छोड़
चल दिए ।
ये कैसी दुनिया है
ना समझ सका सन्यासी
ए खुदा,
अब इन सवालों को लिए
ज़हन में
हम भी चल दिए ।

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