ना भागा जाए ना छोड़ा जाए,
ये ज़िंदगी की
कश्मकश है दोस्तों,
यूँही बितायी जाए
बस यूँही बितायी जाए ।
कुछ पल मिल जाते हैं
मुस्कुराने को,
ये तनहाइयाँ यूँही
भुलाई जाएँ,
इनहि मुस्कुराहटों के सहारे
ये ज़िंदगी
बस बितायी जाए ।
जब देते हैं जजबात उनको
मुस्कुराहटों में संजोये हुए
तब उनकी नज़र में बस
हम काफ़िर से खड़े नज़र आए,
उठती है नज़र
फ़नाह कर देने को
उनकी इसी अदा पे
ये तमाम ज़िंदगी बितायी जाए।
कभी हम जान-ए-बहार नज़र आए
जब आया उनको प्यार,
कभी हम जानी-दुश्मन से खड़े नज़र आए
जब हुई उनसे तकरार,
इनहि लमहों में
निकल जाती है ज़िंदगी,
बस यही फ़लसफ़े
लिखते लिखते बितायी जाए।