इम्तिहान है ये ज़िंदगी
हर पल,
कभी पास कभी फ़ेल,
हम भी यूँही चल रहे हैं
हर क़दम,
कभी पास कभी फ़ेल,
खुदा मिले तो
ये पूछूँगा में
की क्या कोई है
जो ले उसका भी इम्तिहान,
या बस
बंदो के लिए है
ये दस्तूर
कभी पास कभी फ़ेल।
खेल रहे ग्रह ,
फँसे इंसान
इस चक्कर में बेबस हैं,
हम भी बँधे हुए इस डोर में
खड़े बस बेबस हैं,
कोई आता नहीं
खिवैया बन कर
जो लगा दे पार ,
यूँही नज़र अन्दाज़ कर रहे
अपनी बुरी हालत dekh
हम बेबस हैं ।
कभी वक़्त मुस्कुरा देता है हम पर
अहसान करके ,
कभी उतार देता है
खाई में हमें,
सरे बाज़ार बेज़ार करके,
होश मिलता नहीं सम्भलने का,
की झकमी हुए दिखते हैं ,
इस हालत में
कैसे अपनो को सम्भाला
ख़ुद को नीलाम करके।
आएगा खुदा को
रहम हम पर,
तब होंगीं मुश्किलें दूर,
होगा सवेरा जब
होंगे ग्रह मुझे देने को
मुस्कान मजबूर,
अकेला चल रहा
इस लम्बे सफ़र में ,
साथ लिए दो जिम्मेदारियाँ,
उनकी मुस्कुराहट के लिए
सब इम्तिहान हैं हमें मंज़ूर।
ऐ खुदा
ये तो बता दे ,
कब होगा आग़ाज़
उस वक़्त का,
इंतज़ार करता
खड़ा हूँ लड़ते हुए
जिस वक़्त का,
कंधे हमारे
हुए जा रहे हैं कमज़ोर,
तेरे इस इम्तिहान में,
खड़ा क्यों है तू दूर ,
इंतज़ार तुझे है किस वक़्त का।