तूफ़ान आया है

तेज़ हवाएँ  चल रहीं

कमज़ोर पत्तियाँ

शाख़ से टूट रहीं,
सब अस्त्वयस्त हो रहा
हर तरफ़ तूफ़ान
पर फैला रहा
मंज़र बर्बादी का ला रहा,
पक्षियों को उड़ना कहाँ
पता नहीं
पशुओं को छुपना कहाँ
पता नहीं,
कुछ ऐसे भी हैं
जीव यहाँ
जिन्हें जाना कहाँ
पता नहीं।
प्रारभद से बँधे
सब चल रहे
तूफ़ान से लड़ते हुए
बढ़ रहे,
क़िस्मत क्या
लायी है सामने
बार बार
हवा तेज़ हो जाती
किसी जीवन को
तहस नहस कर जाती,
किसी के ऊपर
महरबान हो
क़िस्मत उसे बचा जाती,
खेल यही है
चल रहा
मनुष्य इसमें फँस रहा।
माया है ये
इसे नहीं है पहचानता
कैसे बचे इससे
नहीं ये जानता,
लत लगी है
माया के स्पर्श की
माया मिले
बस है नाचता ,
ब्रह्म आनंद को
नहीं वो जानता
जब आती है आँधी
चलता है तूफ़ान
बस तभी वो उस प्रभु को
है याद कर मानता,
प्रारभद नहीं ये
इशारा है प्रभु का
जिसे पहचान
उसको पाना है प्रयत्न
बस यही है जाना ।

Leave a Reply