कश्मकश में बितती ज़िंदगी,
नासमझ से खड़े हैं हम
कुछ खट्टी कुछ मीठी
यादों के सहारे
खड़े हैं हम
अपनी ज़िंदगी को
ख़ुद उलझाने की
आदत है यहाँ
गीता के ज्ञान का
सीधा रास्ता भूल कर
खड़े हैं हम।
प्रभु से बात हुई तो
असमंजस में खड़े हैं हम
सत्य के कथन को समझते
यूँही खड़े हैं हम
कहते हैं वो
अंकांक्षाएँ हैं
दुखों का कारण मेरे
यह सुन
क्या करें
क्या ना करें
सोचते खड़े हैं हम ।
पंक्तियों में
संजोते अपने भावों को
फिर खड़े हैं हम
चलती है दुनिया
चलती है दुनिया
अपनी राह पर,
बददिमाग़ से खड़े हैं हम
हाथ थामे हैं उस प्रभु का,
कर्म और फल दोनो
प्रदान किए,
कुछ नहीं चाहिए
अपने लिए,
प्रारभद से बँधे
खड़े हैं हम ।