माहौल में बस यूँ ही जिए जाते हैं लोग

इस माहौल में

बस यूँ ही

जिए जाते हैं लोग

आपस में लड़ते

फिर भी ईद साथ में

मनाते हैं लोग,

दिखाई देते जो नये चहेरे  यहां,

उन्हें गले लगा लिया करते हैं

सब मुखौटे उतर जाते यहां

जब साथ साथ खीर खाते हैं लोग,

मिला करते थे

रोज चौराहों पर,

आम बात थी

आज किसी को

फुरसत  नहीं ,

कमाने में मसरूफ हैं लोग,

समय के साथ मिलकर

चलने में

इतने मसरूफ हो गए

अलग ढंग के कपड़े पहनकर

अपनापन भूल गए हैं लोग

मोहब्बत की

जब  बुझती है जोत

तब नया दौर जन्म लेता है

खुदा की नेमत हो तो,

अंधेरो में खुद को भी पाते हैं लोग।

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