पहलू में

वक्त गुजरता है,

लम्हे चले जाते

कशमकश के पहलू में
शाम हो जाती है,

मंजर चले जाते

उदासी के पहलू में।

बैठे ताक रहे थे

खिड़की से बाहर अंधेरों को

चांदनी नजर आयी

दूर वादियों के पहलू में।

कुछ मुस्कुराहट सी आयी

लबों पर हमारे

जैसे एक आग समाई हो

सैलाब के पहलू में।

खिंचाव वो सीने में,

एक टीस भी उठी थी

मरहम जहर बन गया हो जैसे

आंसुओं के पहलू में।

निकली आह दिल से

वो खड़ी सामने मुस्कुराती

बेटी को देख समझा

अकेलेपन की जगह नहीं पहलू में।

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