तुम फूल हो
पिता के गुलशन की,
तुम्हे माँग कर लाया था
तुम धड़कन हो भाईयों की,
तुम्हे गठबंधन कर पाया था।
आईं तुम मेरी दुनिया में,
मरुस्थल का मै निवासी था
घबराईं तुम
देख मरुस्थल ,
मै भी लड़खड़ाया था।
लड़े हम खुद से,
कभी अपनो से
किया घमासान
फिर आई
एक नन्ही परी,
उसे देख मन हर्षाया था।
बनाया घरौंदा
उन आंधियों में,
जूझते रहे गिरते रहे
तुम्हारी पुरजोर कोशिश
व हिम्मत देख
सिर नवाया था।
कारवाँ चलते रहे,
हम खडे़
दसतूरों से लड़ते रहे
जब लगा
वक्त खड़ा मुहँ फेरे
तुम्हे देख मुस्कुराया था।
हार तुम मानतीं नहीं,
खड़ी हो
विजय पताका फैराए
हर्षित हूँ
तुम हो साथ,
तभी मै
यहाँ तक बढ़ पाया था।