मेरी माँ मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ

सुबह सवेरे

उठते ही

सारा जग राम राम करे

में उठते ही  

तुम्हें प्रणाम करता हूँ ,

ध्यान धर तुम्हारा 

हर काम

आरम्भ करता हूँ ,

सभी कुछ

अच्छा हो जाता 

जब तुम्हारा ध्यान  करता हूँ,

रुके काम भी पूरे होते

ग्रह चलते अपनी चाल

तुम बैठी होगी

पूजा करती

यह मैं जान लेता हूँ,

मेरी माँ मैं तुम्हें

बहुत प्यार करता हूँ।

तुम स्वरूप हो 

उस हरिहर का

यही मैं

हर बार जान लेता हूँ ,

मुझे कहीं दूर होती तकलीफ़

अगर 

तुम्हारा ख़ुद-ब-ख़ुद आता phone

मेरी माँ मैं तुम्हें

बहुत प्यार करता हूँ।


मेरा फ़ोन

ना आये तो 

तुम्हारी डाँट लेता हूँ,

मौन रह कर कभी 

कभी तुमसे लड़ कर 

मैं अपने frustration 

निकाल लेता हूँ |

तुम दूजे ही पल 

बता कर

तकलीफ़ मेरी 

सब लेतीं अपने ऊपर 

और मैं

तुम्हारा प्यार लेता हूँ,

मेरी माँ मैं तुम्हें

बहुत प्यार करता हूँ।

माँ,यह सब जानते हैं 

ना होती तुम 

तो ना होता

जन्म मेरा ,

पर मैं जानता हूँ

ना होतीं तुम 

तो बिखर जाता 

ये परिवार सारा ,

तुम्हीं करता बनी 

तुम्हीं कारण,

तुम्हीं ने फल दिए

ना होने दिया कुछ अकारण ,

माँ, तुम सत्य हो 

अनभिज्ञ हो उत्तेजना हो 

तुम सर्वस्व हो , माँ हो कभी 

सखा हो, कभी दुश्मन सी 

खड़ी हो जाती हो,

सारा भार हमारा हर समय 

यूँही ले जाती हो।

सोचता में

प्रभु की कृपा का 

क्यों हर बार 

भागीदार हूँ ,

लिखते लिखते जाना 

तुम्हारा ध्यान

जो हर बार धरता हूँ ,

मेरी माँ मैं तुम्हें

बहुत प्यार करता हूँ,

मेरी माँ 

मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ।








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