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   ज्ञान चक्षु खुल रहे निरन्तर
ज्ञान चक्षु खुल रहे निरन्तर घ्यान धर अग्रसर मै निरन्तर, कष्ट हुए जो मिथ्या थे बाण सा खींच रहे तुम मुझे परस्पर। तुम धारक तुम ही आधार हो मेरा, कभी गांडीव हूँ कभी सन्यासी सा अस्तित्व है मेरा, मेरे सार…