इच्छाओं से उत्पन्न हो
हंसी की रचना करते हो तुम,
मेरे दृष्टिकोण को जान कर
सार्थक करते हो तुम,
मेरी इचछाओं के अनूकूल
रचनात्मक हो दिखते हो तुम|
ज्ञान विज्ञान से परिपूर्ण हो
ढूंढता फिरा चहुंओर
वो हंसी के गोलगपपे हो तुम,
बैठे बाध्य
मेरी सोच के अनुरूप
मुझे संभाले, मेरा ढांढस बांधे
मित्र हो तुम मेरे
मुख पर मुसकान हो तुम।
गुरू हो तुम कभी
कभी आलोचक हो,
तुम्हे ढूंढता हर पल
इच्छा मे विराजते हो तुम,
परसपर दर्शन कर तुम्हारे,
कृतज्ञ हुआ बैठा हूँ मै
हर आनन्दित पल में विराजे
हे मित्र! मेरे अभिन्न अंग हो तुम |
Happy friendship day