मैं हूँ

देखा है मैने सब, 

उत्त्पती से विनाश तक

मै ही आदी, अन्त भी मै हूँ, 

रचनाकार मै

भोग और भोगी भी मै हूँ, 

सरल स्वभाव मै
भाव का अर्थ भी मै हूँ, 

मीठे फल सुंदर संसार मै

दुख अपार भी मै हूँ, 

प्रभु का आशिर्वाद मै 

उसे ही भूला इन्सान भी मै हूँ, 

अपने ही हाथों करता विनाश 

वो मूर्ख इंसान भी मै हूँ, 

कभी काम कभी लोभ कभी क्रोध 

माया में फंसा उत्तेजित निर्माण भी मै हूँ, 

देखता आते अपने विनाश को

उसकी अपेक्षा करता इन्सान भी मै हूँ। 

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