किल्लतों में जीता मरता
जरूरतों की झोली भरता
कहीं मुस्कराना या फिर कहीं छुपाना
यही है तेरा एक अंदाज सा
क्यों चल रहा तू करता संग्राम सा।
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अग्रसर है दुनिया की भीड़ में
दिखता नहीं है पर पीड़ में
छुपाए आँसुओं की झील सी
आते हैं ये पल, लिए नया अंदाज सा
क्यों चल रहा तू करता संग्राम सा।
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रुक देख पलट कर, आती है आवाज
रोकती है तुझे, करते देख आगाज
विचार कर और देख कर, आचार कर
दौड़ना भीड़ में, नहीं है सही अंदाज सा
क्यों चल रहा तू करता संग्राम सा।
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आएगा समय, मिल जाएंगे द्वार निकलने को
मित्र बनेगें सभी, तैयार पिघलने को
संयम ओर श्रद्धा हैं दो सतविचार
मत छोड़ विश्वास कर, कर्मशील हो अर्जुन सा
क्यों चल रहा तू करता संग्राम सा।