माया है यह

मधुशाला है एक दलदल , धंसते जाना  है 

वहीं लालच वहीं माया,  फँसते जाना है 

अज्ञानता से मोहवश लगता यही है  प्रेम अपार

ये काम मद मोह सबमाँगे समय और कुंध विचार

माया है यह, नहीं समभले तो करेगी तिरस्कार। 

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कर्म में  लगे सभी  जन करते  अपना उद्धार 

नए आयाम पाकर भी, प्रयास करें  अपार

नारायण नाम नहीं मुखपर, माया से हुआ है प्यार 

समझदार की समझ कहाँ, खोए मित्र जब मिले माया का प्यार 

माया है यह, नहीं समभले तो करेगी तिरस्कार। 

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सुनो तुम  एक बात, करो प्रतिदिन का अभ्यास 

जड़ बुद्धि में आएगी उत्तेजना और  विश्वास, 

दो पल अपने को बहूमूलय दो

बैठ ध्यान में  अपने कर्मो को विचार दो, 

माया है यह, नहीं समभले तो करेगी तिरस्कार। 

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जब मित्र का पुनः संग आएगा, हो अग्रसर कर लेना पुनः सुविचार,

मायाजाल तब छंट जाएगा, पाओगे प्रियजनों का  प्यार,

नहीं फँसो  तुम , ना  ही धँसो  तुम, नित दिन  तुम ध्यान धरो

नारायण का नाम लिए अपना दिन आरम्भ करो

माया है यह परस्पर, फिर भी हम भी देखेगें 

ये तब कैसे करेगी तिरस्कार। 

 

2 thoughts on “माया है यह

  1. bahut khub ……shandar lekhan.
    नारायण नाम नहीं मुखपर, माया से हुआ है प्यार
    समझदार की समझ कहाँ, खोए मित्र जब मिले माया का प्यार
    माया है यह, नहीं समभले तो करेगी तिरस्कार।

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