हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते जाते
जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते
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अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते-जाते
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रेंगने की भी इज़ाज़त नहीं हमको वरना
हम जिधर जाते नयें फूल खिलाते जाते
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मुझको रोने का सलीक़ा भी नहीं हैं शायद
लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते
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अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत करके
जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते
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हमसे पहले भी मुसाफिर कई गुज़रे होंगे
कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
Sundar kavita! ! Zameel mazahri ki panktiyan Yaad ho ayin… yha jo tha wo tanha tha yhan jo hai wo tanha hai, ye duniya hai ye duniya hai isi ka nam duniya hai…
Uttam….sarahniye kavita.👌👌