खाली हाथ

हाथ खाली हैं तेरे शहर से जाते जाते 

जान होती तो मेरी जान लुटाते जाते 

… 
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है 

उम्र गुज़री है तेरे शहर में आते-जाते 

… 
रेंगने की भी इज़ाज़त नहीं हमको वरना 

हम जिधर जाते नयें फूल खिलाते जाते 

… 
मुझको रोने का सलीक़ा भी नहीं हैं शायद 

लोग हँसते हैं मुझे देख के आते जाते 

… 
अब के मायूस हुआ यारों को रुख़्सत करके 

जा रहे थे तो कोई ज़ख़्म लगाते जाते 

… 
हमसे पहले भी मुसाफिर कई गुज़रे होंगे 

कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते

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