कुछ वक्त की करवटें सी बदलती देखीं
कुछ अपनी तमन्नाऐं सी बदलती देखीं,
हर वक्त सिलसिले वार चाल थी उसकी
‘मै’ के प्रहार से हालत नासाज थी उसकी,
जमाने मे जज्बातों की जगह कहाँ बची है
कुछ सुनने और कुछ सुनाने की जगह कहाँ बची है,
अहसान भी ऐसे दिखाते हैं लोग आजकल
की जन्नत में जगह दिलादें जैसे लोग आज कल।
Sahi kaha….Khubsurat lekhan.