जूते घिसे छेद वाली शर्ट पहने
फटेहाल मेरा मित्र बस केशव के गुण गाए,
गृह अशांत पर पत्नी शांत उसकी
इसी आनन्द मे मुस्कुराहट मुख पर आए,
रास्ता कहीं दिखता भी है अगर
मरिचिका सा स्थान और आगे चला जाए,
कन्हैया ने पकड़ा तो है हाथ
यही आस ले मन में, बस प्रतिदिन बिताए,
कभी शंका सी जागे है
कहीं उसका हाथ ही न छूट जाए,
कुछ मित्र देख रहे और कुछ कर रहे मदद
कहीं अपने बूते से बात, बाहर न चली जाए,
अब कहां है भोर और वो छांव
कहीं इन्तजार में प्राण ही न निकल जाए,
नौकरी छूटी EMI का बोझ है
मकान जो है घर, कहीं छूट न जाए,
बैंक को कहा B. T. करा कुछ topup देदे
उसका बोझ थोड़ा हल्का हो जाए,
Market इतना down है
बेचकर भी बेचारा नुकसान ही है पाए,
कहीं कोई तरीका हो तो बताना
कहीं उसका हाल सच में बुरा नहो जाए।
khubsurat kavita.