सहिष्णुता

जीवन के सात रंग
यही कहे इंसान

कभी ख़ुशी कभी ग़म
दगा और इल्ज़ाम
यही रास्ते पर चल कर
ऊँचा रखे स्थान
कहाँ गयी सहिष्णुता
क्या कर रहा इंसान ।
अपनो से ही कर दग़ा
पाए सुख चैन
खोया जो जीवन का सुख
नासमझ इंसान
रोया जब समय पलट आया समान
कहाँ गयी सहिष्णुता
क्या कर रहा इंसान ।
 
कर स्पर्धा
उन लोगो से जो खड़े समान
किया युद्ध अर्जुन ने,
भाई दे सम्मान 
बहुत रोएगा
जब जाऊँगा मान अपमान 
कहाँ गयी सहिष्णुता
क्या कर रहा इंसान ।
 
सुन मित्र कर तू विचार
सम्मान से ही जीता जाए
ये कुरुक्षेत्र अपार 
करा यही था कृष्ण ने भी
था गीता का ज्ञान
सोच समझ के लिया कर
निर्णायक तू महान ।
 
होगा आत्मबोध
तब आएँगे भगवान 
तर जाएगा सभी दुखो से उस पार 
रख श्रद्धा
बांधे सहिष्णुता
अपना आत्मसम्मान
सहिष्णुता से ही हो यशस्वी
हो बहुत सम्मान  ।

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