कई लम्हे इस तरह

समय लाया है कई लम्हे इस तरह सांसे कभी जाती कभी आतीं जिस तरह, ये कशमकश जिदंगी से पहचान बनाती ऐसे हो रहा प्रारम्भ मनचाही उडान का इस तरह। ले हाथों में हाथ उडे ही थे प्रारभद की ओर की सामने से आता तूफान देख रूके किसी तरह, हुआ अंधेरा कड़कती बिजलियाँ चहूं ओर ले … Continue reading कई लम्हे इस तरह

मंगल भवन अमंगलहारी

बुद्धिमान बने मनुष्य कुछ सत्य-अर्धसत्य की पहचान कुछ अपनी बातों से कर प्रभावित कंधों पर सवार दूसरों के बना रहे पहचान कुछ। गड्ढे खोद दूसरों के लिए सिर ताने हुए हैं गणना कर चलते आगे थोड़ी आगे हुए हैं उस भक्त पर हो अधिपत्य मेरा खरगोश की भांती रस्ते में सोए हुए हैं। मंगलकारी जनार्दन … Continue reading मंगल भवन अमंगलहारी