मंगल भवन अमंगलहारी

बुद्धिमान बने मनुष्य कुछ

सत्य-अर्धसत्य की पहचान कुछ

अपनी बातों से कर प्रभावित

कंधों पर सवार दूसरों के बना रहे पहचान कुछ।

गड्ढे खोद दूसरों के लिए सिर ताने हुए हैं

गणना कर चलते आगे थोड़ी आगे हुए हैं

उस भक्त पर हो अधिपत्य मेरा

खरगोश की भांती रस्ते में सोए हुए हैं।

मंगलकारी जनार्दन बंसी बजा रहे हैं

उनकी लीला देख भक्त मुस्कुरा रहे हैं

अनिष्ठ क्या करेंगें प्रपंच में फंसे हुए

मंगल भवन अमंगलहारी के दर्शन हो रहे हैं।

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