बेपरवाह मौसम करता है रुसवा जमाने को
कर निकले शमा रौशन जैसे पूरे मैखाने को,
अलग अलग इंतज़ाम लिए हर मय जैसे तासीर अपनी
बैठे हैं सब मौसमों में खोए हुए लिए तक़दीर अपनी,
जैसे किसी परिंदे के बच्चों के पर और वो उड़ निकलें
जाएँ इनकी रुहानियत को सैय्यद फिर मसल निकलें,
बस में नहीं मैखाने के, की होश में शराबी निकले
बेपरवाही इनमें इतनी की बिना पीए ही जोश निकले,
जैसे शमा अनजान है कितने परवानों की
आना है बेसबब हो कर , फ़ितरत जमाने की,
मय से बुझाने प्यास, शराबी लड़ कर निकले
हो नज़रेकरम उसकी, शमा बुझा कर शराबी बहक कर निकले।