ज़िंदा थे पर तस्वीरों में पहुँचते देखे
कुछ तस्वीरें भी ज़िंदा होती देखीं,
कुछ को चलन निभाते देखा
कुछ को चलन सिखाते देखा,
उलझे हुए को खुश देखा
सुखी को उलझते देखा,
जो ज़िंदा हैं उन्हे प्रयाग में देखा
प्रयाग में कुछ को ज़िंदा होते देखा,
IIM पास को नागा बनते देखा
नागा को सदा मस्त ही देखा,
बड़े बड़ों को प्रपंच में फंसते देखा
समझदारी से समस्याओं को उलझाते देखा,
समझदार को चुप बैठ सुनते देखा
नासमझ को उसे समझाते देखा,
3 आयाम वाली दुनिया में रेंगते देखा
रेंगते को अभिलाषाओं के नीचे दबे देखा,
ऊपर से बैठ अगला-पिछला सब देखा
सीधे सादे समाधान को नज़रअन्दाज़ होते देखा,
गीता और रामायण हाथ में देखी
पर सीख उसके पन्नो में ही दबी देखी,
धृतराष्ट्र बने सब को चलते देखे
दुर्योधन व दुशासन को गद्दी पर देखा,
ये तो अंतहीन कथा है यारों
रोज़ किसी ना किसी नए रूप को देखा।