चतुर्भुज महादेव के हृदय में तुम निवास करती हो
उनके चरणों में तेरी शक्ति जैसे साक्षात वास करती हो
अंखियों को बंद किए बैठे मेरे महाकाल समाधि में
आप स्वयं महामाया बन प्रेमभाव से उन्हे सराबोर जो करती हो।
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कभी महाकाली सा तेजस्वी स्वरूप लिए
राक्षसों के मुंड और हाथों में खरग लिए,
कभी गौरी मैया से सुंदर स्वरूप ले बैठ जाती हो
घेरती हो महाकाल को कभी दश महाविद्याओं सा विभाजन लिए।
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आदी शक्ति हो, विराजमान हर कण में होना तुम्हारा
कभी दिगम्बर स्वरूप सिर्फ मुंड और रुद्राक्ष धरना तुम्हारा
कितने अलग अलग स्वरूप लिए इस सृष्टि को बचाती हो तुम
हूँ धन्य मै की दिया अवसर करूँ मै गुण गान तुम्हारा।
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बुलाता हूँ तो हर जगह तुम आ जाती हो
कभी अपनी गोद में सिर रख मेरा, मुझे सुलाती हो
कभी स्वयं ही प्रकट होना और मेरे कष्टों का हरना तुम्हारा
निरंकार स्वरूप लिए फिर मुझसे अपने लिए कविता लिखवाती हो।
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कब तेरे साक्षात दर्शन पाऊंगा मै
कब अपने हाथ से तुझे खाना खिलाउँगा मै
होंउंगा तेरे समक्ष तेरे पैर दबा तेरी सेवा करूंगा
थकी होगी जब सबके पास से आकर, तब तेरे चरणों में प्यार जताउँगा मै।