*श्रीगुरुदेव स्तुति*

गुरु रूप धर आय हरि आपहुँ कबहुँ भेद न कीजै
गुरु चरण रज सदा अवलोकों नित्य सीस धर लीजै

वाणी गुरु की अमृत समाना सुन सुन मन सीतल होवै
जन्मन की मैल अति गाढ़ी करै गुरु कृपा नित धोवै

कान देय सतगुरु की बाताँ जो नित्य सुने मन लाय
हरि गुरु कृपा सहज सुख बरसै बिरला कोऊ जन पाय

साँचो नेह सदगुरु कौ होय करै सम्भार मात समान
भजन करन कौ बल जो देय और नाम प्रेम कौ दान

गुरु वाणी पर संशय न कीजै हरि गुरु एकै समाना
भव रोग की काटे फाँसी तुरंत करै भव रोग निदाना

गुरुचरण रज सीस चढ़ाय नित जाइये बलिहारी
तन मन धन गुरुचरण अर्पण जीवन होय सुखकारी

देह मिली मानुस की बाँवरी बढ़भागी गुरु पाई
बलहीन बुद्धिहीन बाँवरी गुरुजस गुरुकृपा ते गाई

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