अनुभूति देख कर आओ

झोपड़ों में जिन्दगी गुजारना

दुखों के सैलाब में

मुस्कुराहट तलाशना,

खाने को ना हो

उसके पास दो वक़्त,

बच्चों को सुलाने को

ना हो उसके पास छत,

फ़िर भी सोते हुए

मालिक का नाम पुकारना,

अगले दिन तड़के उठ कर

फिर भीख मांगते दिन गुज़रना।

गरीबी के इस कहानी में

कुछ समय बिताओ,

उनके साथ बैठ कर

छोटी सी खुशी में शरीक हो आओ,

इस सावन भोलेनाथ की पूजा करने

मंदिर भले न जाओ,

पर किसी गरीब के पास

दस का नोट जरूर छोड़ कर आओ,

किसी भीख मांगते बच्चे को

अपनी बोतल से जल थोड़ा पिलाओ,

उसकी आँखों में सुखः और शुक्रिया की

अनुभूति जरा देख कर आओ।

Leave a Reply