मेरी परी

सम्मोहित करता स्वरूप तुमहारा हुआ रोम रोम पुलकित हमारा, मृगनयनी सी अंखियां तुम्हारी पलकें जैसे पंखुड़ियाँ तुम्हारी, देख तुम्हे मोहित हुआ हूँ तुम्हे पाकर मैं सुशोभित हुआ हूँ।। ********* बातें तुम्हारी हैं रस घोलती सुनो मेरी बात बस यूं हो बोलती, नखरे तुम्हे आते नहीं बनाने चली आती हो यूंही मुस्कुराहट दिखाने, तुम्हें सुनकर कमाल … Continue reading मेरी परी