सम्मोहित करता स्वरूप तुमहारा
हुआ रोम रोम पुलकित हमारा,
मृगनयनी सी अंखियां तुम्हारी
पलकें जैसे पंखुड़ियाँ तुम्हारी,
देख तुम्हे मोहित हुआ हूँ
तुम्हे पाकर मैं सुशोभित हुआ हूँ।।
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बातें तुम्हारी हैं रस घोलती
सुनो मेरी बात बस यूं हो बोलती,
नखरे तुम्हे आते नहीं बनाने
चली आती हो यूंही मुस्कुराहट दिखाने,
तुम्हें सुनकर कमाल हुआ हूँ
मैं बस यूं ही निहाल हुआ हूँ।।
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डैडी डैडी आवाज़ है आती
सोते हुए भी मेरीआंखें हैं खुल जाती,
ढूंढता एक दम कहाँ है मेरी परी
खड़ी दिखती जैसे देवी मनोहरी,
तुम्हें देख धनवान हुआ हूँ
मैं बस तभी से मूल्यवान हुआ हूँ।।
बहुत सुंदर