तुम कृष्ण से मिल पाओगे

प्रेम कियो

जैसे अलख जगायो,

गोपियों संग वो

रास रचायो,

राधा संग वो

बंसी बजायो,

सृष्टि रची कैसे

ढाई अक्सर में सीखायो।।।

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मूर्ख संसार

कलजुग में फंस्यो,

रास लीला को

भोग समझयो,

समर्पण और विश्वास भुलाई

दुर्गा रूप स्त्री

काली दृष्टि सुहाई,

घर में माँ बहन की चिंता

बाहर पराई कन्या देख

किंचित नहीं हिचकचाता ।।

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क्यों नहीं दृष्टी तुम

साफ कर लेते,

जब देखो पराई औरत

तो ध्यान पैरों पर धर लेते,

माँ महाकाली

बिना वस्त्र के है विचरती,

जब देखो छोटे कपड़े

क्यों नहीं तुम

महाकाली का ध्यान धर लेते।।

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जान लो तुम

ये ज्ञान लो,

नजर नीचे अगर

तुम्हारी होगी,

इज्ज़त तुम्हारी

ऊंची होगी,

कंधे होंगे चौड़े

और सिर तन जाएगा,

तब सृष्टिकर्ता

तुम पर प्रेम बरसाएगा।।।

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न बिमारी

न दुख होगा,

जग सच्चा और

मन मैल रहित होगा,

तुम कृष्ण से

तब मिल पाओगे,

राधा के तुम प्यारे

बिना कहे बन जाओगे

आनन्द और परमानन्द को तुम

तब ही समझ पाओगे।।।

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इस भाव को

जितना जीवन में उतारोगे,

इतना सुख समृद्धि

से जीवन यापन कर पाओगे,

अगर इस भाव को

आगे मित्रों तक ले जाओगे,

मां महाकाली के

आशीर्वाद का पात्र बन पाओगे,

हरेगी हर व्यवधान तुम्हारा

इस भावना को

आगे तुम अगर share कर पाओगे।।

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