छाया है वो माता की
काया है वो पिता की
इन्द्र धनुष से सपने उसके
थिरकते घर में हैं पैर उसके
घर भर देती चह चहा कर वो
इठलाती घूमती नखरे दिखाती
खुशियां बिखेरती फिरती है वो ।
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उसके बिना ये घर सूना
मेरा जग सूना, मेरा मन सूना
आती लड़ती झगड़ती यूं
रूठती भड़कती मुझ पर यूं
फिर भी चाहिए उसे प्यार मेरा
रात को उसको सोना नहीं
जब तक ना मिले उसे दुलार मेरा ।।