इंसान की फितरत का पता नहीं
उसको सच्ची मोहब्बत का पता नहीं,
उस उम्र की क्या बात करें दोस्त
जिसमे उसे अपने अपनों का पता नहीं ।
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पाता है नाकामयाबी ये यूंही हर पल
उम्मीद का दामन छोड़ना सीखा ही नहीं
रहती है जिंदगी में उसके बेपरवाही से हलचल
ता उम्र उसकी नज़रें इसलिए कभी झुकती नहीं ।
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तुम उस नाज़नीन को देख आंहें भर रहे थे
उसकी कमसिन उम्र को देख पिघल रहे थे
तकलीफ ये नहीं कि तुम अपने आप ही मोहताज हो
तुमसे अपनी फितरत और निगाहें संभलती नहीं।।
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इस नाज़नीन से ज़रा सवाल तो कर लो
इससे हाल ए दिल बता कर, सच्चा इकरार तो कर लो
फिर देखो कैसे बनती है जन्नत ज़मीन पर
देखेंगे की खुदा को नेमत कैसे बरसती नहीं ।।
Nice poyem