चाय वाला

गुज़ारिशों के पंखों पर

अहमियत के कंधों पर,

बंधे बंधन में ऐसे

शुतुरमुर्ग के अंडे हो जैसे,

ना खाए बनता है

ना उठाए बनता है,

जो मजलूम हुआ करते थे कभी

पांव में छाले गिना करते थे कभी,

आज हुकूमत किया करते हैं

दूसरों की ख्वाहिशों को परख कर

खुदी बुलन्द किया करते हैैं,

ये वो दौर है ए दोस्त

जब चाय बेचने वाले ट्रंफ को भी

हुकूमत करने की सीख दिया करते हैं।।

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