शादियों के नूर देखें
दुल्हन के सृंगार देखें,
दूल्हे के सिर पर है सेहरा
बाप का तमतमाया है चेहरा,
कोई कसर नहीं आती नजर
खुशियों को लगती कहीं से नजर,
पड़ते फिर भी फेरे सुन्दर
कसमें खाते दोनों निरन्तर,
रीत चलते रिवाज हैं चलते
रिश्तेदार खाना देख मचलते,
दुल्हन के पिता का
दिल निकलता,
सोचते-सोचते
विदाई का समय निकलता,
रह जाता घर आंगन सूना
बेटी के बिना क्या जीना,
खुश रहें
वो आबाद रहे
खुशियों भरा संसार रहे,
माता-पिता बस जीते रहते
और खुद से यही कहते रहते।