धूल भरी आंधियों में
कुछ नजर नहीं आता,
नज़रें इधर-उधर देखती हैं
जब तक ये दिल
भर नहीं जाता,
एक छड़ी
जो पकड़ी है
इन्सान तो उससे भी
सहारा नहीं पाता,
जब – जब
उसे सनम के दीदार की
दरकार होती है,
आंखों के सामने से
वो नजारा नहीं जाता,
हमसफर और हमराज़
जो होते हैं,
उनके बिना
जीना नहीं आता,
चोट खाकर
जल्दी गिर जाता है इन्सान,
प्यार करने वाले के सिवा
और किसी को उठाना नहीं आता,
अगर सनम ना हो
तो
कुछ नहीं
कहीं नहीं
जिंदगी खाली पैमाने सी है उसकी,
इस जाम को भरने के लिए
मयखाने की तरफ
उसे जाने का रास्ता नहीं सुझाता,
खुशनुमा सी जिंदगी है
दोस्तों के साथ
पर उसे फिर भी
तकलीफों का
पार नजर नहीं आता,
मुस्कुराहटें
और
हसीन जिंदगी के पल
हों उसकी जिंदगी में,
यही दुआ करता रहता है हर दम
पर पैगाम
उस प्रभु के द्वार तक नहीं जाता।