In memory of my beloved brother who left us on 18th December
सो गया दरखत अपनी भुजाओं में ,
खेलकर बड़ा हुआ इन्हीं हवाओं में ,
तौल न सके तराजू से वाट उसे ,
उड़ गया कैसे कब इन्हीं हवाओं में।
कितने लम्बे हाथ थे जनाव उसके ,
कैसे द्रुतगामी घोड़े थे मन के उसके,
तोड़ दीं जंजीर, दीवार पत्थर की,
छोड़ मोह माया उड़ा हवाओं में।
फूलती टहनी खुशबू संवार दीं,
कलियाँ रंग भर भर उभार दीं,
छाया बनेंगी किसी थकी राह में,
रहेंगे हमसफ़र तुम स्वकलाओं में।