आज का लॉक डाउन में, अच्छे अच्छों की सब्ज़ी बन जाती है

कुछ यूंही कविताओं की

समाधि बन जाती है,

आज कल लॉक डाउन में,

अच्छे अच्छों की सब्ज़ी बन जाती है।

साफ सफाई और झाड़ू पोछा

बर्तन में कभी,

कभी सब्जी काट कर

दाल चढ़ाने में जिंदगी बीत जाती है।

बस यूंही लोग डाउन में

अच्छे अच्छों की सब्जी बन जाती है।

कहीं कोई व्हिस्की के पेग बनाता है

और कहीं कोई बीवी की

मदद कर हाथ बतांता है,

बस यूं ही लोग डाउन में

अच्छे अच्छों की सब्जी बन जाती है।

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