एक पुरानी  तस्वीर फिर याद आयी

वोह कस्ती बनाना

कागज़ के प्लेन उड़ाना

एक छोटी सी आदत

बचपन की एक पुरानी तस्वीर

फिर याद आयी।

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पेंसिल उठा कर सीनरी बनाना,

उसमे एक पेड़

और एक झील याद आई,

दिल रखने को घरवालों से

थोड़ी तारीफ भर पाई।

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सबको बताना

कितने शैतान थे हम,

और बचपन की याद

फिर भर आई,

जब कपड़े गंदे करे

तो मां की पिटाई याद आई।

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वोह रात को देर से सोना

सुबह आंखों में नींद

और उस पर पढ़ाई,

आज सुबह बचपन से

फिर मुलाक़ात हो आई।

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मां का वो सुंदर चेहरा

पिता का चौड़ा कंधा हो जाता,

फिर वही अंधेरी रात में

मोमबत्ती जला कर पढ़ पाते,

वहीं रजाई में खिसक कर

सो जाते।

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अंत नहीं इन भावों का

काश वक़्त से दोस्ती होती,

बस एक मुस्कुराहट सी छाई

आज सुबह बचपन से

फिर से मुलाक़ात हो आई।

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