चलना छोड़ दूँ मंजूर मगर नहीं!

माना कि आसान ये सफर नहीं,
चलना छोड़ दूँ मंजूर मगर नहीं!
जीत होगी तो सभी साथ चलेंगे,
हार में यहाँ कोई हमसफर नहीं!!

धन के लिए जमीर का सौदा,
न हासिल हो कभी ये ओहदा,
झांकु मैं किसी की तिज़ोरी में,
ऐसे फिसलती मेरी नज़र नहीं!!

कमजोर पर ही रौब झाड़ना,
दूसरों के निवालों को ताड़ना,
गरीब की आह पर न पसीजे,
इतना कठोर मेरा ज़िगर नहीं!!

आसमाँ से जो नाता जोड़कर,
जमीं से सारा रिश्ता तोड़कर,
गुरूर में उड़ते ऐसे पंछी को,
मिलता फिर कोई शज़र नहीं!!

जीना होगा या पड़ जाए मरना,
भरोसा बस खुद पर ही करना,
तुझमें ही वो घनश्याम रहते हैं,
तुझसे अलग तो वो ईश्वर नहीं!!


तुमेश पटले “सारथी”

Leave a Reply