त्रिदोष ज्वर

तीन ताप:-【काम, क्रोध, लोभ】
हम सभी को त्रिदोष ज्वर हो गया हैं।
जिसकी वजह से जीव चहुओर पागलों की भाँति मारा मारा दर दर भटकता फिरता हैं।

इसीलिए कहा है,

कभी योग में फंसता
तो कभी
भोग में फंस जाता,
वियोग में कभी
आंसू बहते
तो कभी
मोह में फंस जाता।
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कभी दयामय हो
दीन बन जाता
बुद्धिहीन हो कभी
कंगाल हो जाता,
कभी गुणहीन मुर्ख बन
सफल हो जाता
तो कभी पंडित हो
आधार रहित हो जाता।
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पाखंडी बन
धर्मज्ञानी बन जाता
सम्पूर्ण जगत धनमय दिख जाता,
शत्रुमय हो सभी का
जगत काममय स्त्री
स्वरूप हो जाता।
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*काम, क्रोध और लोभ में
सम्पूर्ण जगत है जकड़ा,
गोस्वामी तुलसीदास
कह गए वखत पड़े,
संयम, जप, तप, नियम,धर्म व्रत इत्यादि
जो जन कर जाता,
कर विजय
इन महरोगों का नाश कर जाता।

।*यह रोग श्रीराम जी के चरणों के प्रेम बिना दूर नही हो सकते।।।।*

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