काली काम्बली वाला

नज़र लगी जब कान्हा को

मैया करी जतन हजार,

कभी देखें कान्हा को

क्या करें आए ये विचार।

बात करने जा पहुंची

पंडित से तब

वो दिन्यो तथ्य हजार,

आंसू रुके ना मैया के जब

वो पोथी पढ़ पुनः करयो विचार।

नज़र और बुखार

दोनों उतर जाई है

जो लाई हो राधा की उतरन एक बार,

मैया दौड़ी बरसाने

ना देख्यो मौसम को प्रहार।

कीर्ति मैया बैठी करें

राधा संग खेल

देख उन्हें यशोदा मैया हर्षित हुईं

फिर लगाए गुहार,

जो तुम राधा की उतरन दो

उतर जाई है

मोरे लल्ला की नज़र हजार।

सुन कीर्ति मैया

असुअन से नेत्र भिगोए

ले जाई हो तुम राधा के जो चाहे

कपड़े हजार,

राधा खड़ी मुस्काए

देखो प्रभु के खेल

मेरी काली कंबली ओढ़ने को

लीला रची हजार।

तब राधा जी दौड़ी आयिं

नेत्र पोंछे मैया के

किए कई दुलार,

बोलीं

मैया काली कमब्ली ले जाई हो

उतरे है कान्हा की नजर हजार।

उस समय से कान्हा मोरे

कहलाए काली कांबली वाले कुमार,

राधा जी देखत

बरसाने से

मुस्काए प्रभु

करवाएं जतन हजार।

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