पितृ छाया

जिसका ध्यान धर

दुःख क्षीण हो जाते,

स्मरण मात्र से
सुख उपलब्ध हो जाते,
सम्मुख होने पर जिसके
हो अस्तित्व पर नाज़।
वो जिसने
चलना सिखाया,
वो जिसने
पढ़ाया लिखाया,
वो जो थामे है
मेरी ऊँगली आज,
वो जिसने
अपना पसीना बहाया.
वो जिसने
कभी हक़ ना जताया,
वो जो है
सर्व सहायक,
वो है जिनमें
मेरा अस्तित्व समाया
कभी आता ग़ुस्सा
तब भी
होता उसमें प्यार,
हाथ उठाया
ना कभी मुझ पर यार,
जब डाँटा
तो काँप गए हम,
किया ना कभी दुलार ऐसा
जो बिगड़ गए हम,
खड़े रहे हैं
अडिग सम्मुख,
जब लड़खड़ाए
ना बढ़ाया हाथ
ख़ुद उठने की राह दिखा कर
किया उन्मुक्त विचार,
यही होते और
ऐसे ही हैं मेरे पिता
और मेर संसार ,
प्रेरित करते
अपने संयम से
दिखा शक्ति अपार,
हुए धन्य हम
ऐसे पिता की पा कर छाया
जैसे समस्त संसार।
हे ! पिता श्री
हम धन्य हैं
हो आपकी संतान,
आपके सम्मुख
शक्ति हमारी
क्षण भंगुर समान,
नमन करें हम
और करें
कोटि कोटि प्रणाम ।

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