चंद लम्हों में
सिमटी ये ज़िंदगी,
इसे गुज़ार लो या संवार दो।
अपने हों संग
तो है ख़ुशनुमा ज़िंदगी,
छोटी बातों को यादों से निकाल दो।
फूल खिलते हैं नूर ए नज़र बनकर
पेड़ को जब जल से निकास दो ।
उड़ने दो हवाओं में पंछी बनकर
पंखों को इनके और संवार दो ।
घनी छाया माता पिता से है मेरे बच्चों
उनकी टहनिया बन
उन्हें फैलाव दो ।
हवाएँ चलती रहती हैं
यूँही दर ब दर
इन हवाओं से गिरे पत्तों पर ना ध्यान दो ।
हम सब जब तक
मुस्कुराते साथ चल रहे यूँही
मजाल किसी की
जो इस परिवार पर वार हो ।
रुकते बढ़ते
यूँही छाले पड़ जाते हैं पैरों में
इन छालों पर एक दूसरे के
दो आँसू निसार दो ।
मुस्कुरा कर अपनो पर जरा नाज़ करें हम
लंदन और विप्रों में अपना नाम हो ।
अभी पिक्चर बाक़ी है मेरे प्यारों
तीन इक्के और हैं हमारे पास
इन पर अपना प्यार निसार हो ।
Love you all